व्याकुल मन, अश्रु भरे नयन,
किनारे पर बैठा देख रहा दुर्दशा,
पथ में रेत, टीले में झीण किनार,
बेसहारा पुत्र, स्पर्श को दर्शन दुर्लभ,
मृत श्वांस, शहर श्मसान।
घोर निराशा के बीच नहीं सुध,
दिशाविहीन चेतन,
आत्म द्रवित समक्ष काल,
भोग रहा विलासिता,
नहीं स्मरण मृत मातृ।
हे माते, दे देवी, हे गंगा,
नहीं नदी, जीवनदायिनी तू,
तुमसे काशी, तुझसे जीवन मेरा,
जल त्यागा, नाश हो जाएगा,
अंत की ओर सृष्टि।
लल्जित हूं, स्वयं की करनी पर,
करोड़ो में एक हाथ मेरा भी,
अहित में तेरे,
फिर भी मान रहा स्वयं की निर्दोष,
दुखी हूं,
शायद मेरे काया को ना मिले आंचल तेरा,
इसलिए दे दूंगा अपनी तिलांजलि,
शायद जाग जाए इंसान,,,