व्याकुल मन, अश्रु भरे नयन,
किनारे पर बैठा देख रहा दुर्दशा,
पथ में रेत, टीले में झीण किनार,
बेसहारा पुत्र, स्पर्श को दर्शन दुर्लभ,
मृत श्वांस, शहर श्मसान।
घोर निराशा के बीच नहीं सुध,
दिशाविहीन चेतन,
आत्म द्रवित समक्ष काल,
भोग रहा विलासिता,
नहीं स्मरण मृत मातृ।
हे माते, दे देवी, हे गंगा,
नहीं नदी, जीवनदायिनी तू,
तुमसे काशी, तुझसे जीवन मेरा,
जल त्यागा, नाश हो जाएगा,
अंत की ओर सृष्टि।
लल्जित हूं, स्वयं की करनी पर,
करोड़ो में एक हाथ मेरा भी,
अहित में तेरे,
फिर भी मान रहा स्वयं की निर्दोष,
दुखी हूं,
शायद मेरे काया को ना मिले आंचल तेरा,
इसलिए दे दूंगा अपनी तिलांजलि,
शायद जाग जाए इंसान,,,
5 comments:
गंगा माँ को प्रदुषण से बाचने का एक अच्छा प्रयास |
मनभावन रचना, दिल को छू जाने वाली रचना,
अति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
कितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
shashi kant singh
www.shashiksrm.blogspot.com
narayan narayan
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए सुंदर चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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